दशहरा का इतिहास और महत्व: क्यों मनाया जाता है विजयदशमी पर्व?

भारत एक विविधताओं से भरा देश है, जहाँ हर पर्व का अपना एक अनोखा इतिहास, परंपरा और सांस्कृतिक महत्व है। इन्हीं प्रमुख त्यौहारों में से एक है दशहरा या विजयदशमी। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह सत्य की असत्य पर, धर्म की अधर्म पर और न्याय की अन्याय पर जीत का प्रतीक भी है।

आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि दशहरा का इतिहास क्या है, इसका महत्व क्यों है और इसे विजयदशमी क्यों कहा जाता है।


प्रश्न: दशहरा क्यों मनाया जाता है?
उत्तर:
दशहरा इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था और माता दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था। यह पर्व सत्य की असत्य पर विजय और अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है।


1. दशहरा शब्द का अर्थ

  • ‘दशहरा’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है –
    • दश = दस
    • हरा = हार (पराजय)
  • इसका अर्थ हुआ – दस बुराइयों का नाश।
  • ये दस बुराइयाँ हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, आलस्य, ईर्ष्या, अन्याय और अहंकार।
  • इसीलिए यह पर्व हमें जीवन से इन बुराइयों को दूर करने का संदेश देता है।

2. दशहरा का इतिहास

(क) भगवान राम और रावण की कथा

  • रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने जब रावण का वध किया तो वह दिन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि था।
  • रावण अत्याचारी, अहंकारी और अधर्म का प्रतीक था।
  • भगवान राम ने धर्म और सत्य के पक्ष में युद्ध करते हुए उसे हराया।
  • तभी से यह दिन विजयदशमी कहलाया।

(ख) माता दुर्गा और महिषासुर की कथा

  • देवी महात्म्य और मार्कंडेय पुराण के अनुसार, असुरों के राजा महिषासुर ने देवताओं को परास्त कर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।
  • देवताओं के अनुरोध पर माँ दुर्गा प्रकट हुईं और उन्होंने लगातार नौ दिनों तक युद्ध कर दसवें दिन महिषासुर का वध किया।
  • यह दिन भी विजयदशमी कहलाया।

👉 दोनों कथाएँ इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।


3. विजयदशमी क्यों कहा जाता है?

  • राम की विजय – धर्म की अधर्म पर।
  • दुर्गा की विजय – स्त्री शक्ति की असुर शक्ति पर।
  • इसलिए इसे विजयदशमी कहा गया।

4. दशहरा पर्व का सांस्कृतिक महत्व

  1. अच्छाई की जीत का संदेश
    • यह पर्व हर व्यक्ति को प्रेरित करता है कि चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंत में जीत सत्य और अच्छाई की ही होती है।
  2. सामाजिक एकता
    • दशहरे पर गाँव-गाँव, शहर-शहर में मेले लगते हैं।
    • लोग एक साथ इकट्ठा होकर बुराई के प्रतीक रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन करते हैं।
  3. नवीन शुरुआत का प्रतीक
    • कई स्थानों पर दशहरे को नए कार्य, व्यापार और शिक्षा की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।
    • लोग अपने हथियार, औजार और वाहन की पूजा करते हैं।

5. दशहरा मनाने की प्रमुख परंपराएँ

(क) रावण दहन

  • उत्तर भारत में जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है।
  • दशमी के दिन विशाल मैदानों में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं।
  • आतिशबाजी और पटाखों से पूरा माहौल उत्सव में बदल जाता है।

(ख) शमी पूजन

  • महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में दशहरे पर शमी वृक्ष की पूजा होती है।
  • लोग एक-दूसरे को शमी के पत्ते सोने के प्रतीक के रूप में देते हैं।

(ग) आयुध पूजा

  • दक्षिण भारत में दशहरे को आयुध पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।
  • इस दिन लोग अपने औजारों, किताबों, वाहनों और हथियारों की पूजा करते हैं।

(घ) दुर्गा विसर्जन

  • पूर्वी भारत (पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, झारखंड) में दशहरे को दुर्गा पूजा का समापन माना जाता है।
  • माँ दुर्गा की प्रतिमा का भव्य विसर्जन होता है।

6. दशहरे का धार्मिक महत्व

  • यह पर्व हमें सिखाता है कि धैर्य, परिश्रम और सत्य के साथ किसी भी बुराई पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
  • यह दिन आध्यात्मिक दृष्टि से भी शक्तिप्रद है।
  • पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान की आराधना करने से शत्रु और नकारात्मक शक्तियाँ नष्ट होती हैं।

7. आधुनिक युग में दशहरे का महत्व

  • आज के समय में दशहरा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक त्योहार बन चुका है।
  • यह पर्व हमें जीवन में मौजूद बुराइयों – जैसे नशा, भ्रष्टाचार, हिंसा, अन्याय – के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है।
  • डिजिटल युग में भी लोग सोशल मीडिया पर दशहरा की शुभकामनाएँ साझा कर इस पर्व को वैश्विक स्तर पर मना रहे हैं।

8. दशहरा और शिक्षा

  • प्राचीनकाल में राजा दशहरे के दिन शस्त्र और शास्त्र की पूजा करवाते थे।
  • आज भी विद्यार्थी इस दिन किताबों और पेन की पूजा करते हैं।
  • यह ज्ञान और शक्ति दोनों के महत्व को दर्शाता है।

9. दशहरा पर्व से मिलने वाली सीख

👉 इस पर्व से हमें कई जीवनोपयोगी सीख मिलती हैं:

  1. सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है।
  2. बुराई चाहे कितनी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई की ताकत के सामने टिक नहीं सकती।
  3. अहंकार का अंत निश्चित है।
  4. एकता और सहयोग से कोई भी संकट दूर किया जा सकता है।
  5. नारी शक्ति सर्वोच्च है।

10. दशहरा 2025 कब है?

  • पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में दशहरा का पर्व 3 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
  • तिथि: आश्विन शुक्ल दशमी
  • पूजा मुहूर्त: सुबह 9:15 बजे से 11:30 बजे तक शुभ है।

11. FAQ

प्रश्न 1: दशहरा किसका प्रतीक है?
👉 दशहरा अच्छाई की बुराई पर विजय और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है।

प्रश्न 2: दशहरा को और किस नाम से जाना जाता है?
👉 दशहरा को विजयदशमी भी कहा जाता है।

प्रश्न 3: दशहरा पर्व कितने दिन बाद आता है?
👉 यह नवरात्रि के दसवें दिन मनाया जाता है।

प्रश्न 4: दशहरा केवल हिन्दू धर्म का त्योहार है क्या?
👉 मुख्यतः यह हिन्दू पर्व है, लेकिन इसकी सीख सार्वभौमिक है और सभी धर्मों के लोग इसे मानते हैं।

प्रश्न 5: दशहरा का सीधा संदेश क्या है?
👉 बुराई का अंत और अच्छाई की विजय।


निष्कर्ष

दशहरा या विजयदशमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह नैतिक मूल्यों और जीवन दर्शन का उत्सव है। भगवान राम और माता दुर्गा की विजय कथाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, यदि हम सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं तो सफलता निश्चित है।

यह पर्व हर व्यक्ति को प्रेरित करता है कि अपने भीतर की बुराइयों को खत्म करके जीवन को सकारात्मकता, न्याय और सदाचार से भरें।

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